Twin Tower: नोएडा की इन बड़ी इमारतों को क्यों किया गया ध्वस्त? 2004 में जमीन आवंटन से ब्लास्ट करने तक की जानकारी
Supertech Twin Tower: नोएडा के सेक्टर सेक्टर 93a में स्थित सुपरटेक बिल्डर के ट्विन टावर 28 अगस्त रविवार 2:30 बजे ध्वस्त कर दिए गए. यह पहली बार हुआ जब देश में इतनी ऊंची इमारतों को जानबूझकर ढ़हाया गया. इसी कारण से यह ध्वस्तीकरण ऐतिहासिक रहा और सोशल मीडिया समेत चारों तरफ इसके चर्चे बने हुए हैं.
#WATCH | ‘Controlled implosion’ turns Noida’s #SupertechTwinTowers to dust pic.twitter.com/zDksI6lfIF
— ANI (@ANI) August 28, 2022
ध्वस्तीकरण से ठीक 1 दिन पहले यहां तकरीबन 800 करोड़ की लागत से 32 मंजिला इमारत लोगों के लिए सेल्फी प्वाइंट बन गई और भारी मात्रा में यहां आकर लोग अपनी तस्वीरें खिंचाने लगे. बता दें कि इस बिल्डिंग पर आरोप था कि यह भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ी है और इसने नियमों को खंडित किया है. इसी वजह से इसके खिलाफ एमेरल्ड कोर्ट के खरीदारों ने अपने खर्च की एक लंबी लड़ाई लड़ी. केवल इतना ही नहीं यदि कोर्ट का आदेश समय से नहीं आता तो बिल्डर इन टावरों को 40 मंजिल तक बनाने वाला था.
क्या है पूरा मामला ?
अगर इन टावरों के इतिहास में झांके तो 23 नवंबर 2004 को सुपरटेक एमेरल्ड कोर्ट के लिए नोएडा प्राधिकरण ने जमीन आवंटित की थी. जिसमें सुपरटेक बिल्डर को यहां 84,273 वर्ग मीटर जमीन आवंटित की गई. 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डीड हुई. हालांकि इसके बाद जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी और घटी हुई भी निकली.
इसी क्रम में यहां प्लॉट नंबर 4 में आवंटित जमीन के पास ही 6.556 वर्ग मीटर का एक टुकड़ा निकल आया. जिसे बिल्डर ने अपने नाम आवंटित करवा लिया. इसके लिए जून 2006 में लीज की गई .लेकिन यहां दो अलग-अलग प्लॉट का नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बना दिया गया. जिसका सुपरटेक ने एमराल्ड प्रोजेक्ट लांच कर दिया.
Mountain of debris collected at the feet of #TwinTowers post-demolition#NoidaTowerDemolition pic.twitter.com/6CFxhJ7Iit
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यह प्रोजेक्ट बनने के बाद बिल्डर ने ग्राउंड फ्लोर के अलावा 11 मंजिल के 16 टावर बनाने की योजना तैयार की, वही नक्शे के हिसाब से आज जिस जगह पर यह 32 मंजिला टावर खड़े थे वहां ग्रीन पार्क दिखाया गया था. 2008-9 में इस प्रोजेक्ट ने नोएडा प्राधिकरण से कंपलीशन सर्टिफिकेट भी ले लिया.
लेकिन वही 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटित कर्ताओं के लिए FAR बढ़ाने का निर्णय ले लिया. वही पुराने आवंटन ले चुके बिल्डरों को 33% तक खरीदने का विकल्प भी दिया गया. लेकिन इसी के साथ बिल्डरों को अधिक फ्लैट्स बनाने की छूट मिली.
Fire tender spraying water on trees to clean dust#TwinTowers #NoidaTowerDemolition pic.twitter.com/XxXgzYoULl
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जिसके बाद सुपरटेक ग्रुप को भी इस बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिली लेकिन तीसरी बार जब प्लान फिर से बदला गया तो यहां बिल्डिंग ऊंचाई 40 और 39 मंजिल करने के साथ ही 121 मीटर तक और बढ़ाने की अनुमति सुपर टेक को मिली तो इसी के साथ होम बायर का सब्र टूट गया.
बायर्स को नहीं मिला था नक्शा
RWA यहां बिल्डर से बात करने के बाद नक्शा दिखाने की मांग की. लेकिन बायर्स के मांगने के बावजूद भी बिल्डर ने यहां लोगों को नक्शा नहीं दिखाया. जिसके बाद नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग भी की गई. यहां घर खरीदने वालों को भी कोई मदद नहीं दी गई. वहीं अपेक्स और सियाने को गिराने की इस लंबी लड़ाई में शामिल रहे प्रोजेक्ट के निवासी यूबीएस तेवतिया का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके बिल्डर्स के निर्माण को मंजूरी दी.
उनका कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा कि वह बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी. जबकि बिल्डिंग बॉयलोज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा होना अनिवार्य होता है. इसके बावजूद भी बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया. जिसके बाद बढ़ते विरोध के बाद बिल्डर्स ने उसे अलग प्रॉजेक्ट ही बता दिया.
2012 में कोर्ट में पहुंचा मामला
किसी भी तरह का रास्ता ना दिखाई देने की स्थिति में 2012 में यहां बायर्स ने इलाहाबाद कोर्ट की तरफ रुख किया और कोर्ट ने आदेश लेकर पुलिस को जांच के लिए कहा. पुलिस ने जांच में बायर्स की बात को सही कहा. इस विषय में तेवतिया ने बताया कि इस जांच में रिपोर्ट को भी दबा दिया गया.
#Supertech twin towers brought down in #Noida#TwinTowers #NoidaTowerDemolition pic.twitter.com/mc0SbpM7vS
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इसी बीच बायर्स अथॉरिटी के चक्कर भी लगाते रहे. लेकिन वहां से भी कोई नक्शा नहीं मिल सका. यही खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस दे दिया लेकिन कभी भी उन्हें समाधान नहीं मिल सका. तेवतिया ने कहा कि टावर की ऊंचाई बढ़ने पर यहां दो टावर के बीच का अंतर बढ़ा दिया जाता है. यह न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए थी लेकिन इन दोनों के बीच की दूरी महज 9 मीटर की ही थी.
यदि दो बड़े टावर इतने पास पास बनाए जाते हैं तो यहां धूप और हवा की समस्या होती है. वहीं आग लगने की स्थिति में भी इतने पास होने की वजह से यहां खतरा बढ़ जाता है. निवासियों का आरोप है कि इस नक्शे में इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया. साथ ही यहां पर किसी भी प्रकार की आधिकारिक मंजूरी भी नहीं ली गई और ना ही उसका पालन किया गया.
वहीं जब यह मामला कोर्ट में पहुंचा तो इसकी 13 बन चुकी थी. लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही यहां 32 मंजिलों का निर्माण पूरा कर लिया गया. बिल्डर ने यहां दिन-रात कंस्ट्रक्शन का काम करवाया. हालांकि 2014 में हाईकोर्ट ने बिल्डर को एक बड़ा झटका दिया और यह गिराने का आदेश दे दिया. जिसके पास 32 मंजिल पर इस इमारत का काम रुका और यह वहीं रुका रह गया.
लेकिन बिल्डर का प्लान इसे 40 मंजिल तक बनाने का था. वहीं जानकारों का कहना है कि दूसरी बार इस प्लान के मुताबिक अगर टावर 24 मंजिल तक भी रुक जाते तो भी यह मामला सुलझ जाता. क्योंकि 24 मंजिल की ऊंचाई के हिसाब से इन दोनों टावर के बीच दूरी टूटने का नियम बच जाता.