दिल्ली ब्लास्ट में खोया माता-पिता को, मनीषा ने बनाया खुद को सबसे काबिल- बनी सबके लिए प्रेरणा

नई दिल्ली :— अधिकतर व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर छोटी-मोटी परेशानियों से इतने भयभीत हो जाते हैं मानो उनकी दुनिया ही उजड़ गई हो. ऐसे में अधिकतर लोग समस्याओं के चलते हिम्मत हार जाते हैं और उनके जीवन में एक प्रकार की निष्क्रियता आ जाती है. लेकिन इसके विपरित हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जीवन की तमाम चुनौतियों को करारा तमाचा मारते हुए आगे बढ़ते हैं. और यही लोग समाज के मजबूत पिलर के रूप में उभरते हैं.

यूं तो ऐसे हजारों उदाहरण है लेकिन आज हम विशेष तौर पर चर्चा करने जा रहे हैं दिल्ली की रहने वाली मनीषा माइकल के बारे में, जिन्होंने महज 9 साल की उम्र में एक बम ब्लास्ट में अपने माता-पिता और बड़े भाई को खो दिया और बाद में आखिरी सहारा बची अपनी दादी को भी कुछ समय बाद मुखाग्नि दी.

लेकिन इतनी विषम परिस्थितियों में भी वह मजबूत बनी रही और अपनी हर जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए उन्होंने संघर्ष को चुनौती दी. मनीषा माइकल की यह कहानी समाज की रूढ़िवादी सोच को भी तार-तार करती है. क्योंकि उन्होंने एक दो नहीं बल्कि 3 पीढ़ियों के लोगों का अंतिम संस्कार किया. और विषम परिस्थितियों के चलते भी वह मजबूत बनी रही.

सरोजनी नगर बम ब्लास्ट में खोया माता-पिता को

मनीषा माइकल ने अपने पिता माइकल और सुनीता माइकल के साथ बड़े भाई एलविन माइकल को साल 2005 में हुए सरोजनी नगर बम ब्लास्ट में खो दिया था. दुर्गति इस प्रकार हुई कि ब्लास्ट के दौरान उन्हें शव भी नहीं मिले. जिसके चलते मनीषा अपने पिता के अंतिम दर्शन तक नहीं कर सकी. लेकिन किसी तरह से उन्होंने अपने मां और भाई का अंतिम संस्कार किया. इन विषम परिस्थितियों के बावजूद भी वह अपनी परिस्थितियों से लड़ती हुई अपने दादा भगवान दास और दादी सलीना दास के साथ रहने लगी और संघर्ष में अपने दायित्व निभाने लगी.

जिसके बाद वह अपने दादा दादी के साथ ही रही और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की. कुछ समय बाद उन्होंने होटल मैनेजमेंट में एक कोर्स करते हुए निजी कंपनी में एक नौकरी पा ली और अपने दादा दादी का ध्यान रखने लगी. इस दौरान उन्हें अधिक सैलरी वाली विदेशी नौकरियों का ऑफर भी मिले. लेकिन वह अपने दादा दादी को छोड़ने के लिए राजी नहीं हुई.

कुछ समय बाद दादी भी हो गई भगवान को प्यारी

मनीषा का जीवन कुछ शांति पूर्ण तरीके से व्यतीत होने ही लगा था कि सितंबर 2022 में उनकी दादी भी भगवान को प्यारी हो गई. और एक बार फिर मनीषा अंदर से टूट गई. लेकिन मां-बाप, दादी और भाई को खोने के बावजूद भी उन्होंने सभी का विधिवत अंतिम संस्कार किया और वह सभी दायित्व निभाए जो एक साधारण बेटा कर सकता था.

इस दौरान वह कितनी भी कमजोर हो सकती थी लेकिन हर परिस्थिति में उन्होंने अपने खुद को संभाला. आज भी वह मजबूत पिलर की भांति अपने दादा का ध्यान रखते हुए दिल्ली के दिलशाद गार्डन में अपने घर में रह रही है और एक बेटे की भांति परिवार की माला के मोतियों को सहेजे हुए हैं.

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